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हुआ प्रभात / बालकृष्ण गर्ग

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मुर्गा बोला-’जल्दी उठकर
अगर न दूँ मैं बाँग,
हो न सवेरा, सूरज दादा
कभी न पाएँ जाग’।
सूरज दादा मुस्काएँ, सुन-
‘कुकड़ूँ-कूँ’ की बात;
छिटकी वह मुस्कान धरा पर,
स्वर्णिम हुआ प्रभात’।

[नंदन, जून 1997]