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हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का / 'सिराज' औरंगाबादी
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हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का
न था मैं इस क़दर घाइल किसी का
दिवाने दिल कूँ समझाता हूँ लेकिन
कहाँ लग होए कोई हाइल किसी का
हुआ है दिल-दही का तुम पे तावाँ
नहीं आसान लेना दिल किसी का
ख़म-ए-गेसू सीं अपने तो गिरह खोल
खुले तो उक्दा-ए-मुश्किल किसी का
किया यक वार में कई दिल की फाँकें
लगा है हात क्या कामिल किसी का
गली में जिस की शोर-ए-करबला है
सलोना शोख़ है क़ातिल किसी का
कहो उस लाला-ए-गुलज़ार-ए-जाँ कूँ
कभी तो देख दाग़-ए-दिल किसी का
‘सिराज’ अब सोज़-ए-दिल मेरा वो जाने
जो है परवाना-ए-महफ़िल किसी का