भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुई है रौशनी अब तीरगी परदे में रहती है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हुई जब रौशनी अब तीरगी परदे में रहती है
इबारत इश्क़ की देखो लिखी रस्ते में रहती है
उमंगें जाग उठतीं जब हिना रचती हथेली पर
चमक अरमान की लेकिन सदा चेहरे में रहती है
तुम्हें दिल में बसाया तब हुआ है राज़ यह ज़ाहिर
तुम्हारे बिन हमारी ज़िन्दगी घाटे में रहती है
बनाया आशियाना है तुम्हारी याद का हमने
हमारी जान भी उस याद के पिंजरे में रहती है
हमारे साथ तुम शतरंज का मत खेल यूँ खेलो
हमारे दिल की धड़कन तो इसी मुहरे में रहती है
पहन सेहरा चले आना हमारे दिल की दुनियाँ में
तुम्हारे प्यार की खुशबू बसी सेहरे में रहती है
तुम्हें है लाज जो सौंपी इसे यूँ ही न खो देना
तुम्हारे ख़्वाब की जन्नत बहुत पहरे में रहती है