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हुए पराजित गाँव / राजेन्द्र गौतम
Kavita Kosh से
बादल आए इन्द्रधनुष ले
टूट पड़ी सेना अम्बर से
हुए पराजित गाँव ।
बाँस बरोबर आया पानी
बहती जाती छप्पर-छानी
फिर भी मस्ती में ‘रजधानी’
यों तो उत्सव-संध्याओं में
चर्चे इनके ही होते हैं
पर आशंकित गाँव ।
ढाणी, टिब्बों फोग-वनों में
कैसा छाया ‘सोग’ मनों में
भय का फैला रोग जनों में
बिजली कोड़े बरसाती है
खाल उधेड़ी इसने तन की
थर-थर कम्पित गाँव ।
किधर गया रलदू का कुनबा
बिखर गया हरदू का कुनबा
बदलू का भी डूबा कुनबा
बोल लावणी के कजली के
सब गर्जन-तर्जन में डूबे
छितरा जित-तित गाँव ।