Last modified on 11 फ़रवरी 2016, at 12:30

हुकम हजुरी करूं जरूरी नहीं जबरदस्ती है / मेहर सिंह

वार्ता- सज्जनों एक समय की बात है कि अवधपुरी में त्रिशंकू के पुत्र राजा हरिश्चन्द्र राज करते थे। उनकी रानी का नाम मदनावत था तथा उनके पुत्र का नाम रोहताश था। राजा बड़े सत्यवादी और धर्मात्मा थे एक दिन स्वर्ग में इन्द्र की सभा में सभी देवता उनके गुणों की प्रशंसा कर रहे थे जिसे सुन कर विश्वामित्र ने कहा कि मैं उनकी परीक्षा लूंगा कि राजा हरिश्चन्द्र कितने बड़े सत्यवादी और दानी हैं। विश्वामित्र ने ब्राहमण का वेश बदलकर छल से राजा हरिश्चन्द्र का राज पाट दान में ले लिया और इसके बाद उससे सौ भार स्वर्ण दान देने का वचन भी ले लिया।

विश्वामित्र राजा, रानी और रोहताश कंवर को नीलाम करके सौ भार स्वर्ण दाम लेने के लिये तीनों को कांशी शहर के बाजार में ले गये तीनों को खरीदनें के लिये वहां तरह-तरह के लोग इकट्ठे हो गये। वहीं पर अपने दल बल के साथ वेश्या भी रानी मदनावत को खरीदने के लिये वहां पहुंच जाती है। 50 भार स्वर्ण में रानी और रोहताश रामलाल ब्राहमण ने खरीद लिए 50 भार स्वर्ण के बदले राजा हरिश्चन्द्र कालिया भंगी के हाथ बिक गये। कालिया भंगी के यहां राजा हरिश्चन्द्र अपना नाम हरिया बता दिया राजा और रानी दोनों अलग-अलग हो जाते हैं यहां से यह किस्सा शुरू होता है और राजा स्वयं क्या कहता है।

मेरा गया राज सिर ताज आज मेरी नौकरी की हस्ती है
हुकम हजुरी करूं जरूरी नहीं जबरदस्ती है।टेक

मैं राजा तैं नौकर होग्या तूं दासी होगी राणी
सदा समय एकसार रहै ना समय आवणी जाणी
कदे अवधपुरी का राजा था आज भरूं नीच घर पाणी
नौकर बण कै खाऊं टुकड़ा करकै कार बिराणी
इज्जत थी कदे लाखां की आज दो धेले मैं सस्ती है।

जिस नै जन्म लिया दुनियां म्हं उसनै मरणा होगा
बुरा भला जिसा कर्म कर्या सब का दण्ड भरणा होगा
काया की किश्ती दिल का दरिया शील तैं तरणा होगा
भली करैंगे पण्मेश्वर एक उसका ए सरणा होगा
तूं चारूं पल्ले चोकस रख या ठग पांचां की बस्ती है।

होणहार बणी होण की खातर तूं मतना ज्यादा रोवै
म्हारे भागां मैं फूल बिछे मत सूल आप तैं बोवै
कुछ करली कुछ कर ल्यांगे मत करी कराई खोवै
गई रैन ईब हुअया सवेरा आंख खोल कित सोवै
तृष्णा नागण काली है फण मार मार हंसती है।

इस बस्ती म्हं काम क्रोध मद लोभ और मोह का रहणा
मन पापी भी फिरै भरमता पड़ता है दुःख सहणा
प्यार का बिस्तर शील का शस्त्र ज्ञान रूप का गहणा
तूं कर ले इब सैल जगत की रहैं किसे बात का भय ना
कहै मेहरसिंह चल देख वहां जहां अटल ज्योत चस्ती है।