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हुजूमे-ग़म में घुट कर हर ख़ुशी दम तोड़ देती है / फ़रीद क़मर

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हुजूमे-ग़म में घुट कर हर ख़ुशी दम तोड़ देती है
यहाँ हर मोड़ पर ये ज़िन्दगी दम तोड़ देती है

उभरती तो है तारीकी में थोड़ी देर को लेकिन
अंधेरों से उलझ कर रौशनी दम तोड़ देती है

कभी तो गर्दिशे-दौराँ में वो लम्हा भी आता है
पहुँच कर के जहां पर हर सदी दम तोड़ देती है

निकलती तो है कोहसारों के सीने चीर कर लेकिन
समन्दर तक पहुँच कर हर नदी दम तोड़ देती है

न जाने हादसा कब रोनुमा हो जाए इस डर से
लबों तक आते आते अब हँसी दम तोड़ देती है