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हुजूम-ए-ग़म से, यां तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है / ग़ालिब
Kavita Kosh से
हुजूम-ए-ग़म<ref>दुख की भीड़</ref> से, यां तक सर-निगूनी<ref>सर झुकाना</ref> मुझ को हासिल है
कि तार-ए-दामन<ref>कपड़े का धागा</ref>-ओ-तार-ए-नज़र में फ़र्क़ मुश्किल है
रफ़ू-ए-ज़ख़्म से, मतलब है लज़्ज़त<ref>मजा</ref> ज़ख़्म-ए-सोज़न<ref>सूई से हुआ जख्म</ref> की
समझियो मत कि पास-ए-दर्द<ref>दर्द की इज्जत</ref> से दीवाना ग़ाफ़िल<ref>अन्जान</ref> है
वह गुल जिस गुलसितां में जल्वा-फ़रमाई<ref>वैभव दिखाए</ref> करे, ग़ालिब
चटकना ग़ुंचा-ए-गुल<ref>गुलाब की कली</ref> का सदा-ए-ख़न्दा-ए-दिल<ref>दिल के हँसने की आवाज</ref> है
शब्दार्थ
<references/>