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हुजूम-ए-यास में लेने वो कब ख़बर आया / 'शोला' अलीगढ़ी
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हुजूम-ए-यास में लेने वो कब ख़बर आया
अजल न आई तो ग़श किस उमीद पर आया
बिछे हैं कू-ए-सितम-गर में जा-ब-जा ख़ंजर
रग-ए-गुलू का लहू पाँव में उतर आया
दिखाई मर्ग ने क्या क्या बुलंदी ओ पस्ती
चलें ज़मीं के तले आसमाँ नज़र आया
हमेशा अफ़ू तिरा है गुनाह का हामी
हमशो रहम तुझे मेरे हाल पर आया
बुतों में कोई भलाई भी है सिवाए सितम
बुरा हो तेरा दिल ना-सज़ा किधर आया
बनाई बात बिगड़ने ने रोज़-ए-महशर भी
उठे हैं खाक से हम जब वो गोर पर आया
कहाँ की आह ओ बुका बात बन गई ‘शोला’
ज़बाँ के हिलते ही फ़रीयाद में असर आया