हुमक-हुमक कर / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
एक पाँव पर खड़ा
एक जटाधारी ऊर्ध्वबाहु पेड़
सामने झुककर
जितना देखता है, उतना ही होता है हैरान-
बग़ल में बच्चा दबाये
इस घर से उस घर जा-जाकर माँजती हैं बर्तन
और रात में पेड़-तले सो रहती है चटाई बिछाकर
जो पति को फूटी आँखों नहीं सुहाती
और जिसकी ओर से यमराज ने भी अपनी आँखें मूँद रखी हैं
उस औरत के फिर होने वाला है बच्चा
छि...छि...छि...!
पानी के नलके पर
उसी लाज को ढँकने
पाँव-पाँव चलता एक बच्चा
माँ की ओर बढ़ा देता है फटी हुई साड़ी
लाज को माथे की बिन्दी बनानेवाला एक नन्हा जीवन-
जो अभी कुछ दिन पहले
घुटने के बल चल रहा था ज़मीन पर!
यानी-
कहने का मतलब है
इस धरती पर
और भी दो आँखें
और एक प्राणी अपना सिर ऊँचा कर
दोनों ओर चिड़िया के डेनों की तरह
अपने दोनों हाथ हिलाता-डुलाता
हुमक-हुमक कर बढ़ता आएगा-ज़मीन पर।
एक पाँव पर
आजीवन एक ही जगह खड़े रहकर
जटाधारी ऊर्ध्वबाहु पेड़
सामने झुककर
देखता है जितना, हैरान होता उतना।