भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुवै जद म्हारै सागै भायला / सांवर दइया
Kavita Kosh से
हुवै जद म्हारै सागै भायला
आ सांस सोरी लागै भायला
अब कोसां तांई चाल्या बगसूं
सोच कांई है आगै भायला
आ बाजी जीतांला आपां ई
मन में आ आस जागै भायला
छोड छिटका परै जाता म्हैं ई
बांध्या कंवळै धागै भायला
आ ओळूं ई धन थारो-म्हारो
आई चालसी सागै भायला