भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुस्न को बेहिजाब होना था / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
हुस्न को बेहिज़ाब होना था,
इश्क को कामयाब होना था।
वेखता दोस्त और दुश्मन भी,
हमको खाना खराब होना था।
आओ हम तुम करीबतर हो लें,
हो लिया जो तनाव होना था।
जलते-जलते जो हो गयी पानी,
नाम उसका शराब होना था।
‘रंग’ आता नहीं है, महफिल में,
ये भी इक इन्कलाब होना था।