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हूक / अमरेन्द्र

आओ मित्रा, यहाँ पर बैठो, घर की बात सुनाओ
कब लौटे तुम अपने घर से, कितने दिन जा ठहरे
उसे छोड़ते क्या सिहरे थे ? क्या सचमुच थे हहरे ?
कैसा लगा गाँव में रहते, कहो अगर कह पाओ ।

क्या चैपाल अभी भी जमता; देखी हँसी-ठिठोली
चरवाहे को कभी बांध पर विरहा गाते देखा
वैसे ही क्या पाट कुआँ के या बस केवल रेखा
बँसबिट्टी क्या बची हुई है ? देखा कहीं पड़ोकी ?

क्या भेटमास अभी भी खिलते, बाबा के पोखर में
मठ की फुलबाड़ी में चुनने आतीं फूल सुहागिन
चानन भरी-भरी क्या रहती भर अखार से सावन
अब भी संझा-धूप-दीप क्या जलते हैं घर-घर में ?

क्यों चुप हो यूं मित्रा बताओ ! गाँव मेरा तो खुश है ?
मेरी बातें सुन कर क्यों मुँह लाल हुआ टुस-टुस है ?