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हूणियै रा होरठा (5) / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
सीयाळै में तापलै
रगड़ हाड सूं हाड
ऊनाळै उकळीज
ठरै पसीणै हूणिया
गिट सीयाळै डांफरांे
लू ऊनाळां पी’र
आया जुग-जुग जी’र
जुग-जुग जीसी हूणिया
गाभण हुयलै छांट सूं
बांझ बाजती रेत
जामै हरियल टांच
मोठ बाजरी हूणिया
बिछी जमीं नै पसरलै
आभौ लेवै ओढ
रातां गीला होय
दिन में सूकै हूणिया
आभौ आंरी अंगरखी
तावड़ियौ है पाग
हवा अंगोछो हाथ
रेत पगरखी हूणिया
मोठ बाजरी मूंग गऊँ
रळा बणावै खीच
दांतां तळै दळीज
जीभ छोलसी हूणिया
लीलां लीलां चरण री
पड़ी जकां नै बाण
एकर सी तौ चाल
भाठा पुरसां हूणिया
मीठा-मीठा लेयग्या
बाजार मोठ मतीर
एकर तूंबा बीज
भूख जीमतौ हूणिया