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हेत : दो / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़
Kavita Kosh से
थांरो हेत
म्हारै ताईं
म्हारो हेत
थारै तांई
यानी
धौरे री रेत
धौरे माथै।
मन भांवती बात
जे करै कोई
म्हारै सारू
म्हनै लागे बो
म्हारो हेताळू
थंनै भी लागतो होसी
साव इयां ईं।
इण सूं आगै बधां आपां
आव
इण सारू
दूजां री मनगत नापां
मनां में ई दिखै
सांचो हेत।