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हेलो ! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
निज री भासा भूत, तेवड़ी
थे मोटी अब खाई !
इतिआसां में आज कठई
थांरा नांव र नोरो,
मन में मोटा बण्या, भलाईं
पीटो लाख ढिंढोरो,
जलम देवती जुग-पुरूषां नै
बा भासा मुरझाई !
बरस चार सौ गया नै कोई
इस्यो नखतरी जायो,
भरत खंड में करयो हुवै जे
थांरो मान सवायो ?
थे प्रताप री भामासा री
खाई बैठ कमाई !
रवि ठाकुर बंगाली, गांधी
गुजराती जस गासी,
राजस्थान्यां ! थांरी पीढी
किण रो नांव गिणासी ?
सबळ करो निज री भासा नै
जद मिटसी निमळाई।