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हे कविते / कालीकान्त झा ‘बूच’
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कल्याणी हे कविते कामिनि
करुणा क' जौं तों नहि अबित'
कोना बितबितहुँ कालक जामिनि...
जीवन केर सुख शून्य सेज पर
पसरि गेल छल कफनक चादरि
चान सनक यौवनक सेज पर
ससरि गेल छल बुन्नक बादरि
हे एहि शवक पुनर्जीवन हे
घोर तमक बिहुंसलि सौदामिनी...
भाव परक ढलढल फोँका में
छल उठि रहल विचारक ज्वाला
अकुलाहटिक व्यथा वाधा पर
लागल छल कुंठा केर ताला
पाकक कोट बनलि तुलसलि हे
आबि गेलीह सुसुत गजगामिनी...
तों उद्दाम बनलि सुरसरिता
मरू हिमश्रृंगक बीचक माला
बहा दहक पाहनक क्रूरता
मेंटा दहक मांटिक सभ ज्वाला
द्रवः द्रवः हे देवि दयामयी
सरसाबह साधक केँ स्वामिनि...