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हे गंगा माई मोहे बांझ बनइह / प्रमोद कुमार तिवारी
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हे गंगा माई मोहे बांझ बनइह
गोड़ पकड़ के रोईं बिटिया न दीह....
लड़िकन के आगे रही टुअरी ए माई
सूखले ऊ रोटी घोंटी दूध खायी भाई
बिटिया देवे से पहिले मोहे बाउर बनइह...
कइसे अपने बबूनी के दूध में डुबाइब
हम भला कइसे जियब जहर चटाई
एक वर माई मांगे, तू ही मार दीह...
जग के अजब रीति मोहे ना सोहाला
लछमी आ देवी कहत तनिक ना लजाला
ए विदमानन के बुद्धि ज्ञान दीह...
गोड़ पकड़ के रोईं...