हे गजानन... / कोदूराम दलित
हाथी साहीं तव सूँड़-मूड़, सब तन मनखे जस गणेश,
हे ॐ रूप, मंगल स्वरूप, बड़ अजगुत लगे तोर भेष ।
हे गिरिजा सुत ! हम गिरे अऊर पद दलित मनन ला अब सम्हाल,
सिन्दूर बदन ! स्वाधीन हिंद के, जन-जन ला कर लाल-बाल ।
हे लम्बोदर ! अब हमर उदर पाले खातिर दे दू रोटी,
हे पीताम्बरधारी अब तो दे लाज ढँके बर लंगोटी ।
मूषक वाहन ! बड़हर मन हम ला चपके हें मुसवा साहीं,
चुहकिन सब रसा हमार अउर अब हाड़ा-गोड़ा खाहीं ।
हे गजानन ! दू गज भुइयाँ तक नइये आज हमार करा,
'मिलही खेती-बारी-घर' ये कइथें कतको झन मिठलबरा ।
हर के सपूत ! हर हमार देश के, दुख दारिद, अज्ञान आज,
फरसाधारी ! कर साफ फरेबी मनला, बचा हमार लाज ।
हे गणनायक ! किरपा करके 'गणतंत्र' सफल करदे हमार,
हे एकदंत ! अब एक बरन कर दे बाम्हन, बनिया, चमार ।
हे दीनबंधु ! हम दीन दलित मनके सुनके सकरुण पुकार,
हे अशरण-शरण दयालु देव ! अब आके हमला तहीं तार ।
हे बिघन -हरन ! हर बिघन सबो, हे सिद्ध-सदन ! कर सिद्ध काम,
हे मोदक प्रिय, जग वन्दनीय, शत-शत प्रणाम, शत-शत प्रणाम ।