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हे प्रिया, प्रियंगु लता में तुम्‍हारे शरीर / कालिदास

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श्‍यामास्‍वङ्गं चकितहरिणीप्रेक्षणे दृष्टिपातं
     वक्‍त्रच्‍छायांशशिनि शिखिनां बर्हभारेषु केशान्।
उत्‍पश्‍यामि प्रतनुषु नदीवीचिषु भ्रूविलासान्
     हन्‍तैकस्मिन्‍क्‍वचिदपि न ते चण्डि! सादृश्‍यमस्ति।।

हे प्रिये, प्रियंगु लता में तुम्‍हारे शरीर, चकित
हिरनियों के नेत्रों में कटाक्ष, चन्‍द्रमा में मुख
की कान्ति, मोर-पंखों में केश, और नदी
की इठलाती हल्‍की लहरों में चंचल भौंहों
की समता मैं देखता हूँ। पर हा! एक स्‍थान
में कहीं भी, हे रिसकारिणी, तुम्‍हारी जैसी
छवि नहीं पाता।