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हे मधुमास कहोॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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केना कटलै दिन जिनगी के, हे मधुमास कहोॅ,

रात ऊ कतना सुहानोॅ, याद में बीतलोॅ छेलै
प्यार तोरेह सें सिरिफ छै, कान में कहनें छेलै
दर्द सहना ई कठिन छै, दर्द फागुन तोंय सहोॅ
केना कटलै दिन जिनगी के, हे मधुमास कहोॅ।

छूछ्छे खटिया पर साँपोॅ रं, एैठी-एैठी बीती गेलै,
हमरा भी अचरज लागै छै, प्राण केनां केॅ रहि गेलै,
कोय गहै नै छै आबेॅ हमरा, ऐ फागुन तोंही गहोॅ
केना कटलै दिन जिनगी के, हे मधुमास कहोॅ।

हमरा सें आवेॅ की पूछै छै, पूछोॅ धूप बतास सें,
लाल-लाल फागुन सें पूछोॅ, पूछोॅ लाल पलास सें
विष वाण रंग रोॅ छूटै छै, ऐ फागुन खाड़ोॅ रहोॅ
केना कटलै दिन जिनगी के, हे मधुमास कहोॅॅ।

बाग-बगीचा, बहियारोॅ तक, रसता ताकी कानै छै,
हठी प्रेम रोॅ रिसता कैन्होॅ, बातोॅ नै केकरोॅ मानै छै,
ऐ प्राणवायु बात मानोॅ, याद में हुनकोॅ बहोॅ
केना कटलै दिन जिनगी के, हे मधुमास कहोॅ।