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हे मनहरन प्रभु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
Kavita Kosh से
हे मनहरन प्रभु
पतई-पतई पर
जे सोनहुला किरन नाच रहल बा
से तहरे प्रेम के संकेत ह
तहरे प्रेम पतइन पर
चम-चम-चमक रहल ब।
तहरे प्रेम के संकेत ह
जे अलसाइल मेघ
आसमान में झूम रहल बा,
हवा देह पर
अमरित बरसा रहल बा,
हे मनहरन प्रभु
ई सब तहरे प्रेम के संकेत ह।
तहरे प्रेम के संकेत ले ले
सुबह-सुबह
आ समान से अँजोर आके
रोज हमरा आँखन में समा जाला
तहरा प्रेम के वाणी
तहरा प्रेम के भाषा
हमरा प्राण में पइठ जाला।
हे मनहरन प्रभु
ई सब तहरे प्रेम के संकेत ह।
आपन मुँखरा
तनि आउर नवाके
हमरा लगे क द
जेमें हमरा आँखन का
तहरा आँखन से
लाड़ लड़ावे के
सुविधा मिल जाय।
हम अपना आँखन से
तहरा के छू सकीं।
आज त बुझाता
कि हमार हृदय
तहरा चरनन के
छू लेले बा
हे मनहरन प्रभु
ई सब तहरे प्रेम के संकेत ह।