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हे मेघ, तुम्‍हारी झड़ी पड़ने से / कालिदास

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 त्‍वन्निष्‍यन्‍दोच्‍छ्वसितवसुधागन्‍धसंपर्करम्‍य:
     स्‍त्रोतोरन्ध्रध्‍वनितसुभगं दन्तिभि: पीयमान:।
नीचैर्वास्‍यत्‍युपजिगमिषोर्देवपूर्व गिरिं ते
     शीतो वायु: परिणमयिता काननोदुम्‍बराणाम्।।

हे मेघ, तुम्‍हारी झड़ी पड़ने से भपारा छोड़ती
हुई भूमि की उत्कट गन्‍ध के स्‍पर्श से जो
सुरभित है, अपनी सूँड़ों++ के नथुनों में
सुहावनी ध्‍वनि करते हुए हाथी जिसका पान
करते हैं, और जंगली गूलर जिसके कारण
गदरा गए हैं, ऐसा शीतल वायु देवगिरि
जाने के इच्‍छुक तुमको मन्‍द-मन्‍द थपकियाँ
देकर प्रेरित करेगा।