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हे मेघ, मित्रता के कारण, अथवा मैं विरही / कालिदास
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एतत्कृत्वा प्रियमनुचितप्रार्थनावर्तिनो मे
सौहार्दाद्वा विधुर इति वा मय्यनुक्रोशबुद्ध्या।
इष्टान्देशाञ्जलद! विचर प्रावृषां संभृत श्री-
र्मा भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता विप्रयोग:।।
हे मेघ, मित्रता के कारण, अथवा मैं विरही
हूँ इससे मेरे ऊपर दया करके यह अनुचित
अनुरोध भी मानते हुए मेरा कार्य पूरा कर
देना। फिर वर्षा ऋतु की शोभा लिये हुए
मनचाहे स्थानों में विचरना। हे जलधर,
तुम्हें अपनी प्रियतमा विद्युत् से क्षण-भर के
लिए भी मेरे जैसा वियोग न सहना पड़े।