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हे मेघ, यदि उस समय वह नींद का सुख ले / कालिदास

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तस्मिन्‍काले जलद! यदि सा लब्‍धनिद्रासुखा स्‍या-
     दन्‍वास्‍यैनां स्‍तनितविमुखो याममात्रं सहस्‍व।
मा भूदस्‍या: प्रणयिनि मयि स्‍वप्‍नलब्‍धे कथंचित्
     सद्य: कण्‍ठच्‍युत्भुजलताग्रन्थि गाढोपगूढम्।।

हे मेघ, यदि उस समय वह नींद का सुख ले
रही हो, तो उसके पास ठहरकर गर्जन से
मुँह मोड़े हुए एक पहर तक बाट अवश्‍य
देखना। ऐसा न हो कि कठिनाई से स्‍वप्‍न
में मिले हुए अपने प्रियतम के साथ गाढ़े
आलिंगन के लिए कंठ में डाला हुआ
उसका बाहु-पाश अचानक खुल जाए।