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हे मेघ, विष्‍णु के समान श्‍यामवर्ण तुम / कालिदास

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»  हे मेघ, विष्‍णु के समान श्‍यामवर्ण तुम

त्‍वय्यांदातुं जलमवनते शर्ङिणो वर्णचौरे
     तस्‍या: सिन्धोः पृथुमपि तनुं दूरभावात्‍प्रवाहम्।
प्रेक्षिष्‍यन्‍ते गगनगतयो नूनमावर्ज्‍य दृष्‍टी-
     रेकं मुक्‍तागुणमिव भुव: स्‍थूलमध्‍येन्‍द्रनीलम्।।

हे मेघ, विष्‍णु के समान श्‍यामवर्ण तुम जब
चर्मण्‍वती का जल पीने के लिए झुकोगे,
तब उसके चौड़े प्रवाह को, जो दूर से पतला
दिखाई पड़ता है, आकाशचारी सिद्ध-गन्‍धर्व
एकटक दृष्टि से निश्‍चय देखने लगेंगे मानो
पृथ्वी के वक्ष पर मोतियों का हार हो
जिसके बीच में इन्‍द्र नील का मोटा मनका
पिरोया गया है।