भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे मेघ, सपाटे के साथ तुम नीचे उतरो / कालिदास
Kavita Kosh से
|
गत्वा सद्य: कलभतनुतां शीघ्रसंपातहेतो:
क्रीडाशैले प्रथमकथिते रम्यसानौ निषण्णा:।
अर्हस्यन्तर्भभवनपतितां कर्तुमल्पाल्यभासं
खद्योतालीविलसितनिभां विद्युदुन्मेषदृष्टिम्।।
हे मेघ, सपाटे के साथ नीचे उतरने के लिए
तुम शीघ्र ही मकुने हाथी के समान रूप
बनाकर ऊपर कहे हुए क्रीड़ा-पर्वत के
सुन्दर शिखर पर बैठना। फिर जुगनुओं की
भाँति लौकती हुई, और टिमटिमाते
प्रकाशवाली अपनी बिजलीरूपी दृष्टि महल
के भीतर डालना।