भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे राम / जटाधर दुबे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे राम!
कैनहें तोरोॅ जनम होलोॅ छेलै
ऊ कोॅन परिस्थिति आकि ज़रूरत रहै
कि अवतार लै लेॅ पड़लोॅ छेल्हों तोरा प्रभु
ई सभ्भैं जानै छै,
सतयुग खतम होला के बाद से ही
सतगुण के लोप होय गेलोॅ छेलै
आरो त्रेता के आरंभ ही तमोगुण से होलै
बढ़ि गेलोॅ छेलै अन्याय, आतंक, अत्याचार
राक्षसी प्रवृति रो बोलबाला,
रावण सहित असंख्य राक्षस रो जन्म
कठिन होय गेलोॅ छेलै,
बढ़िया भला लोगोॅ रो जीवोॅ
स्त्री वस्तु भर होय गेलोॅ रहै
अपहरण रो संस्कृति फली-फूली रहलोॅ छेलै
ऐन्हाँ में आवी केॅ तोंय
हे प्रभु, त्रेता केॅ देल्होॅ त्राण
बचैल्होॅ आदमी रो प्राण।
करल्होॅ आदर्श के स्थापना
रामराज्य के अवधारणा
आरो होय गेल्होॅ तोंय युगनायक
मर्यादा पुरूषोŸाम!
हमरोॅ प्रणाम स्वीकारो हे युगत्राता
फेरू से धरती पर धर्म ख़त्म होय गेलै
आदमी आदमी नै रहि गेलै
ऐन्हा में तोरे ज़रूरत छै प्रभु
फेरू से आवो न
आकुल धरती के बचावो न।