हे विहंगिनी / भाग 2 / कुमुद बंसल
11
मधु ॠतु है
बौराये आम्र-वृक्ष,
पलाश डालें
पुष्पित हुईं, भौरे
गाएँ गान वासन्ती।
12
अलस भोर
गाते चिरैया, खग,
ओस-मोती हैं
कर रहे नर्तन,
हृदय-छत पर।
13
आहट सुन
टहनी बैठा पिक
उड़ गया है,
वह नहीं लौटेगा
वृक्ष बहुतेरे हैं।
14
इस ख्याल ने
चिड़िया के परो में
ऊर्जा भर दी,
बाट जोहते होंगे
बच्चे चुग्गे के लिए।
15
कोकिल कण्ठ
भरी कूक अमर,
मंजरी-गन्ध
में डूबके लुटाया,
निज गान गुँजाया।
16
हवा का झोंका,
पंछी गुनगुनाये,
हज़ार गीत।
उड़ी तितली संग
तोड़ कर बन्धन।
17
मेंढक न्योते,
छपाक कूदी जल,
वर्तुल बने,
दौड़ लगी दौनो में,
जल-तरंग सुने।
18
बन गये हैं
छत घूमते खग
पहरेदार,
आँखो में आँखे डाल
दें वचन रक्षा का।
19
बन्द दिशाएँ,
आँधियाँ बरसतीं,
बोझिल साँसें,
हाँफ रही तितली
पंख फड़फड़ाती।
20
मेरी सीमाएँ
नीला नभ अनन्त,
असीम बनूँ,
है खुला निमंत्रण,
पंखों को आमन्त्रण।