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हैं वैसी ही अम्मा / मोहम्मद साजिद ख़ान

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उमर पचासी बीत गई पर
हैं वैसी ही अम्मा ।।

पहन घाँघरा बहुत पुराना
कुर्ती जँचती ख़ूब,
दाढ़ी पर दो बाल सुनहरे
लगते जैसे दूब ।

तारों भरी ओढ़नी देखो
चमके चम्मा-चम्मा ।।

हाथों में चाँदी के कंगन
बड़ा नाक में फूल,
और कान का झुमका जाता
बोल-बात में झूल ।

घुँघरू वाली मोटी पायल
बजती छम्मा-छम्मा ।।

माथे पर दस बड़ी सलवटें
चेहरा झुर्रीदार,
बनी हुई हैं अब भी पूरे-
घर की पहरेदार ।

जाने कब से पड़ा हुआ है
उनके सिर ये ज़िम्मा ।।