भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हैसियत / नेमिचन्द्र जैन
Kavita Kosh से
दरज़े दो ही हैं
दूसरा पहला
खचाखच भरा है दूसरा
पहले में नहीं है भीड़
मारामारी
कहाँ है तुम्हारी जगह
कोशिश कर सकते हो तुम
चढ़ने की
पहले दरज़े में भी
यदि हो वहाँ आरक्षण
तुम्हारे लिए
भागकर जबरन चढ़ोगे
तो उतारे जाओगे
अपमान, लांछन
मुमकिन है सज़ा भी
घूस देकर टिके रहो शायद
अगर यह कर सको
मुमकिन पर यह भी तो है
जिसे तुम समझे थे पहला
वह दूसरा ही निकले
धक्कम-धक्के / शोर-शराबे से भरा
वहाँ भी / क्या भरोसा
जगह तुम्हें मिले ही
कोई और बैठा हो तुम्हारी जगह
बेधड़क, रौब के साथ
ताकत से
या किसी हिकमत
चतुराई से
सूझबूझ के बल
बहरहाल
तुम्हारे लिए
शायद नहीं है
कोई जगह कहीं भी
कुछ भी तुम करो
हैसियत तुम्हारी
है
रहेगी
बेटिकट यात्री की।