हैऽत कोना कें? / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
बिना पाईकऽ हैऽत कोनाक भैया कन्यादान,
एऽह फिकिर में नींद न होय अछि सूखल जाय अछि प्राण।
सोन सनक बेटी सयानी अछि,
पढ़वा में नीक मुदा लजानी अछि।
घरक काज में ततबे प्रवीण,
की कहू साक्षत गुण खानी अछि।
वरक बाप मुदा बनल छथि टाका लेल नादान।
बिना पाई.....सूखल जाय अछि प्राण।
टी.भी. लागत मोपेड लागत
बाजे छथि बहन ऽय।
वर बरातक खर्चा लागत
जानिलियौ निश्चय।
एक लाख पढ़वा लेल राखू या रचता मकान।
बिना पाई....सूखल जाय अछि प्राण।
वरक भविष्य ज्योतिषी कहता
डा. अभियन्ता याकि किसान?
आनक खेत कतेदिन रहितेन?
या लिपता खलिहान?
मगर शान टाटा बिड़ला केर खाय उधारक पान।
बिना पाई..... सूखल जाय अछि प्राण।
कतैय जाय किछु बुझिनैं पड़ै अछि
धीरज राखू बहुत बजै छथि।
मुदाकथा होय हलका फुलका
एको जनभाय कहाँ बजै छथि?
औल बौल में रात बितैयऽ गिनैत तारा चान।
बिना पाई..... सूखल जाय अछि प्राण।
घर बैशी हरिनाम जपै छी,
बम भोलाकें भाँग गछै छी।
औघड़दानी लाज बचेता,
हुनके निशिदिन नाम भजै छी
वरक बाप कें तांडव रोकू दियौ अहाँ सब ध्यान।
बिना पाई.... सूखल जाय अछि प्राण।
-27.09.1985