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है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आयेगा / मजरूह सुल्तानपुरी

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है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आयेगा

हसीनों ने बुलाया, गले से भी लगाया
बहुत समझाया, यही न समझा
बहुत भोला है बेचारा, न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा ...

अजब है दीवाना, न घर ना ठिकाना
ज़मीं से बेगाना, फलक से जुदा
ये एक टूटा हुआ तारा, न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा ...

ज़माना देखा सारा, है सब का सहारा
ये दिल ही हमारा, हुआ न किसी का
सफ़र में है ये बंजारा, न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा ...

हुआ जो कभी राज़ी, तो मिला नहीं काज़ी
जहाँ पे लगी बाज़ी, वहीं पे हारा
ज़माने भर का नाकारा, न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा ...

है अपना दिल तो आवारा
न जाने किस पे आएगा ...

(रुकेगा न रुका है न जाने धुन ही क्या है
कभी ये रस्ता है कभी वो रस्ता) \- २
फिरे है दर बदर मारा
न जाने किस पे आएगा ...

(किसीसे ये मिला था बताए कोई क्या था
बेदारी का समा था के था वो सपना) \- २
ख़ुद अपने दर्द से हारा
न जाने किस पे आएगा ...