है तीर राम जी का ..मेरा हरेक नग़मा
गौतम के धीर जैसा ..मेरा हरेक नग़मा
सबके दुखों को पीकर ..पड़ने लगा है नीला
शिव के शरीर जैसा ..मेरा हरेक नग़मा
हर शब्द में घुला है ..दुनिया का दर्द जैसे
गंगा के नीर जैसा ..मेरा हरेक नग़मा
हर शब्द को चखा है ..लिखने से पहले मैंने
शबरी के बेर जैसा ..मेरा हरेक नग़मा
किसको इसे सुनाऊं ..सुनता है कौन आखिर
है दर्द उर्मिला का ..मेरा हरेक नग़मा
जिसने भी ज़ुल्म ढाया..बरसा है खूब उस पर
बजरंग की गदा सा ..मेरा हरेक नग़मा
इतने हैं बोझ ग़म के ..इसकी कमर झुकी है
लगता है मन्थरा सा ..मेरा हरेक नग़मा