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है दसूं दिश अमूझो घणो श्हैर में / राजेन्द्र स्वर्णकार
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है दसूं दिश अमूझो घणो श्हैर में
म्हैं रैवूं बैवतो आपरी लै’र में
भीड़ मांहीं मुळकता म्हनैं बै मिळ्या
ले लियो म्हैं अमी रौ मज़ो ज्हैर में
कोई अणजाण बाथां में जद आयग्यो
भेद रैयो कठै आपणै-गैर में
भाव कंवळा सवाया हुया प्रीत में
ज्यूं कै बिरखा रौ पाणी मिळ्यो न्हैर में
रीस रै मिस लड़ण’ बै घरै आयग्या
नीं इंयां धन कियो बै म्हनैं म्हैर में
आवो बैठो , करो बात मीठी कोई
कैवै राजिंद कांईं पड़्यो बैर में