भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है धुएँ में सदी / यश मालवीय
Kavita Kosh से
है धुएँ में सदी
उसको आवाज़ दो
बन्द घड़ियों को कोई
घड़ीसाज दो
साँस को ख़ुशबुओं का
वजीफ़ा तो दो
इस उदासी को कोई
लतीफ़ा तो दो
दोस्ती के कई राज़ लो,
राज़ दो
खिड़कियाँ बन्द हैं
खिड़कियाँ खोल दो
है जो गुमसुम उसे
गीत के बोल दो
वक़्त के हाथ फिर से
नया साज़ दो
कब से देखा नहीं
कहकशाँ की तरफ़
मुँह करो तो कभी
आसमाँ की तरफ़
तितलियों को भी
रंगों का कोलाज दो ।