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होता नहीं कुछ स्वयं से / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय
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होता नहीं कुछ
स्वयं से कभी नहीं होता
चलाया जाता है हल
जोता जाता है खेत
डाला जाता है बीज
निराई गुड़ाई किया जाता है
बराबर दिया जाता है पानी
फसल तैयार होती है
मुद्दतों बाद होते हैं नशीब अन्न
दर्शन के, मेहनत काम आती है
नहीं होता कुछ
स्वयं से कभी नहीं होता फिर भी
खुश हुआ चेहरा
मुरझाता जाता है बराबर
बाँटना होता है कई कई हिस्सों मे
कई कई लोगों के बीच छुपाना होता है चेहरा
कई कई दिनों तक
कुछ नहीं होता
स्वयं से कुछ नहीं होता फिर भी
लगाया जाता है इल्जाम
रखाया जाता है गहना
बिचवाया जाता है अनाज
छुड़वाया जाता है घर
कुछ नहीं होता
किसी का फिर भी कुछ नहीं होता