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होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है / 'शेवन' बिजनौरी
Kavita Kosh से
होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है
जब उन से निगाहें मिलती हैं उस वक़्त ये हालत होती है
रंगीनी-ए-बज़्म-ए-दुनिया में ऐसा भी ज़माना आता है
वो दर्द कज़ा बन जाता है जिस दर्द में राहत होती है
ये तुझ पे फ़लक ने ज़ुल्म किया वो मुझ से जुदा मैं उन से जुदा
ख़ुशियाँ तो मनाओ अहल-ए-जहाँ बर्बाद मोहब्बत होती है
आते हैं वो सैर-ए-गुलशन को काँटों से बचाए दामन को
होंटों पे तबस्सुम है उन के आँखों से शरारत होती है
देखा है हमारी आँखों ने ये बात हक़ीक़त होती है
हर शख़्स मेहरबाँ होता है जब उस की इनायत होती है
तन्हाई के आलम में अक्सर दिल उस से बहलता है ‘शेवन’
तारीकी-ए-शाम-ए-हिज्राँ में ग़म की भी जरूरत होती है