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होतै गियान गे / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
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सखी-  : चल गे गंगिया स्कूल जैबै
होलै विहान गे।
स्कूल जैबै पढ़बै-लिखबै
होतै गियान गे॥

सखी-  : एना-केना स्कूल जैबै, मन लागै मनझमान गे
की कहियों पढ़ै में नै लागै छै, हमरोॅ धियान गे॥

सखी-  : पढ़ै में मोॅन केना लागतौ, साफे नै छौ मन गे
मन साफ केना होतौ, साफे नै छौ तोरोॅ तन गे।
तन साफ तेॅ मन साफ जरा दिहें धियान गे
स्कूल जैबै पढ़भै-लिखबै, होतै गियान गे॥

सखी-  : स्वच्छ रहै के मंतर, स्वस्थ रहै के मंतर
धोय केॅ हाथ साबून सेॅ, जानी लेॅ एकरोॅ जंतर।
खाय सेॅ पैहनें, शौच के बाद साँझ-बिहान गे
की कहियौ पढ़ै में नै लागै छै, हमरोॅ मन गे॥





सखी- : पीयै के पानी राखिहें, छानी-छानी गे बहिना
झाँपी-झाँपी के राखिहें, जानी-जानी गे बहिना।
गरमे-गरम खाना खैहें, बात राखिहें मन में गे
स्कूल जैबै पढ़भै-लिखबै, होतै गियान गे॥

सखी-  : शौच नै बाहर जैहें, फैलतौ परदुषन
उपयोग शौचालय के करिहें, झूमी जैतौं मन।
आपनोॅ करिहें, सिखैबो करिहें
मिली संग-संग गे
की कहियोॅ पढ़ै में नै लागै छै, हमरोॅ मन गे।

सखी-  : साफ-सुथरा राखिहें, गली-कूची घर ऐंगना
खुशी सेॅ फुदकी-फुदकी, नाचतौ सुग्गा, फुच्ची मैना।
बापू जी रोॅ पूरा होतै, जे छेलै सपना गे
स्कूल जैबै पढ़भै-लिखबै, होतै गियान गे॥

सखी-  : ठीके कहै छैं गे बहिना, साफ-सफाई के बात
स्वस्थ देहोॅ में आबै, गहरी नींद भरी-भरी रात।
स्वच्छ रहबै, स्वस्थ रहबै, ई करबै परण गे
तबेॅ आबेॅ पढ़ै में लागतै, खूबे-खूब मन गे॥