भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होना चाहता हूँ जल.. / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
रोने का मतलब
सौंप देना है
अपनी पीड़ाएँ
जल को
धोने का मतलब
छोड़ देना है
अंतस की कलुषता को
जल में
देने का मतलब
जल ही तो गढ़ता है
कंठों से लेकर
धरती-आकाश तक
समर्पित कर स्वयं को
तर कर देता है।
जल ही तो है
जीवन का हेतु
जो गिरता है पहाड़ से
बहता है नदी में
धरती के पौर-पौर में समाकर
हरीतिमा बनकर फूटता है।
होना चाहता हूँ जल
भूखे पेट
आकुल निगाहों
और
व्याकुल आत्मा को
तृप्त करने ।