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होने और न होने के बीच-8 / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
छिपते दिन में
लौटते हुए
नज़र आये
त्यागे गये चिह्न
यति के
असीसते
जैसे फूल, रक्त में शब्द
ठहर गया वह सोखते
श्रद्धा से
दरसपोथी में
(उ)जाला राख रास्ता