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होने तक / मनोज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
होने तक
कई नाचीज़ बातों के होने तक
यह अविलंबनीय बात रुकी रह सकती है,
कई माँओं के प्रसव-पीड़ा होने तक
यह मरणासन्न बच्चा गर्भ में जीवित रह सकता है,
कई युगों के गुज़रने तक
यह बेचैन क्षण किसी सुखद होनी पर टला रह सकता है,
डाक्टरों के हड़ताल से लौटने तक
यह अधमरा रोगी अपनी सांसें थामे रह सकता है,
कई चेहरों पर से मुखौटा हटने तक
यह चेहरा असली बना रह सकता है,
कई लाशों के चितासीन होने तक
यह लाश अपनी बारी की प्रतीक्षा कर सकता है,
कई फ़िज़ूल किताबों के प्रकाशित होने तक
यह उम्दा लेखक अपनी पांडुलिपियाँ दीमक से बचाए रह सकता है,
कई रातों के ढलने तक
चाँद एक भयानक रात के खौफ से बचा रह सकता है.