भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होने लगा है मुझ पे जवानी का अब असर / प्रदीप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होने लगा है मुझ पे जवानी का अब असर
झुकी जाए नज़र
देखो छलक पड़ी है मेरे रूप की गागर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र

इक ऐसी डगर पर आई मेरी उमर
दमकी है मेरी दुनिया झमकी है झांझर
दुल्हन की तरह आज मैं बन ठन चली किधर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र

मुस्का रहा है मन शरमा रहे नयन
पलकों में झुमने लगे प्यार के सपन
चुपके से मेरे दिल में कोई कर रहा है घर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र

अपना है अब ये हाल लटपट हुई है चाल
मैं ऐसे डोलूं जैसे डोले पवन में डाल
पड़ने लगे हैं पाँव मेरे इधर उधर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र

होने लगा है मुझ पे जवानी का अब असर
झुकी जाए नज़र झुकी जाए नज़र