भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होम्यो कविता: ग्रेफाइटिस / मनोज झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कटा फटा चटचटा सोराइसिस,
 थ्री-एफ देखो दो ग्रेफाइटिस।
गाँठ-गाँठ मल कड़ा बड़ा हो,
 नख बिगड़ा गंदा चमड़ा हो।
 दुधिया प्रदर गलाता खाल,
 एक्जीमा संग पलक हो लाल।
 कर्णनाद हो सों-सोँ गड़-गड़,
 रोता है संगीत को सुनकर।
 खत्म हुई सहवास की इच्छा,
 ग्रेफाइटिस दो यही है शिक्षा।