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होरी / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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हाथ अबीर कांख पिचकारी
भाल पर गदरल चाह उमंग
पूरन भैया होरी खेलथि
नव नौतारि सारि केर संग

कखनहुँ डुबकी लैत अधर मे
जुट्टी मे कखनहुँ हिलकोर
नील, वैंजनी लाल गुलाल सँ
रंगलनि चम्पाक पोरे- पोर

‘टिल्लू’ नयन पर अचरज पसरल
देखि भ्राता केर बसन्ती वुन्न
एखनहुँ श्रृंगारक आह भरल मुदा-
आँखि अन्हार कान छन्हि सुन्न

हऽम पुछलअनि कोना कऽ कयलहुँ
मधु सँ उबडुव मधुरक प्रबंध
सकल तन अछि बेकार मुदा हम
ध्राण शक्ति सँ सूॅघल गंध

भौजी लऽ वाढ़नि आ खापड़ि
झाड़ि देलनि भैया केर अंग
कुरता फाटल नयन नोरायल
भूतल खसल होरी के रंग