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होली-7 / नज़ीर अकबराबादी

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जब फ़ागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारे होली की।
ख़म शीशए<ref>सागर</ref> जाम<ref>शराब का प्याला</ref> छलकते हों तब देख बहारे होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारे होली की॥1॥

हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुलरू<ref>फूल जैसे सुन्दर, सुकोमल और सुकुमार मुख वाली नायिका</ref> रंग भरे।
कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़ो अदा के ढंग भरे।
दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग<ref>गान</ref> भरे।
कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुंहचुग भरे।
कुछ घुंघरू ताल झनकते हों तब देख बहारे होली की॥2॥

सामान जहां तक होता है इस इश्रत<ref>सुख, आनन्द, खुशी</ref> के मतलूबों<ref>इच्छुक, प्रेमी</ref> का॥
वह सब सामान मुहैया हो और बाग़ खिला हो खू़बों<ref>सुन्दर, माशूक, प्रियतमाएं</ref> का।
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का।
इस ऐश मजे़ के आलम में एक ग़ोल खड़ा महबूबों का।
कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारे होली की॥3॥

गुलज़ार खिले हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छींटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुंह लाल, गुलाबी आंखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारे होली की॥4॥

उस रंग रंगीली मजलिस में वह रंडी नाचने वाली हो।
मुंह जिसका चांद का टुकड़ा हो और आंख भी मै<ref>शराब</ref> की प्याली हो।
बदमस्त, बड़ी मतवाली हो, हर आन बजाती ताली हो।
मै नोशी<ref>शराब पीना</ref> हो बेहोशी हो भडु़ए की मुंह में गाली हो।
भड़ुए<ref>वेश्याओं के साथ नकल करने वाले</ref> भी भड़वा<ref>नकल, मज़ाक</ref> बकते हो, तब देख बहारें होली की॥5॥

और एक तरफ दिल लेने को महबूब भवैयों के लड़के।
हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट-घट के कुछ बढ़-बढ़के।
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़के कुछ होली गावें अड़-अड़ के।
कुछ लचकें शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन फ़ड़के।
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारे होली की॥6॥

यह धूम मची हो होली की और ऐश मजें का छक्कड़ हो।
उस खींचा खींच घसीटी पर भडु़ए रंडी का फक्कड़ हो।
माजून<ref>कुटी हुई दवाओं को शहद या शकर के क़िवाम में मिलाकर बनाया हुआ अवलेह</ref> शराबें नाच मज़ा और टिकिया<ref>चरस, गांजे वगैरह की गोल टिकिया जो चिलम में रखकर पीते हैं</ref> सुल्फ़ा<ref>चरस</ref> कक्कड़<ref>जल्द सुलग जाने के लिए, गीले और सूखे तम्बाकू को मिलाकर भुरभुरा बनाया हुआ पीने का तम्बाकू</ref> हो।
लड़ भिड़के ‘नज़ीर’ फिर निकला हो कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो।
जब ऐसे ऐश झमकते हों तब देख बहारें होली की॥7॥

शब्दार्थ
<references/>