हिलता-खिलता-मिलता-जुलता,
आया  होली  का  त्यौहार।
 
नाचे तन-मन, नाचे जीवन
नाचे आँगन, नाचे उपवन,
रंग-बिरंगी  ओढ़  चदरिया
धरती  लाई  नई  बहार।
 
टेसू  महके,  चहके  पंछी
धुन में अपनी हंस-हंसिनी,
चोंच मिलाकर करें ठिठोली
करें  सवेरे  का  सत्कार।
 
अंबर चला बाँध के सेहरा
लिये संग तारों का पहरा,
लगता  मानो  धरा-वधू  की
डोली  लेने  आए  कहार!
 
शीत बीत दिन हुए सुहाने
कुनमुनी धूप लगी मस्ताने,
हँसी-खुशी की, खेल-मेल की
राग-रंग की लगी है धार।
 
ऊँच-नीच क्या, बैर-खार क्या
छोट-बड़न क्या, जात-पाँत क्या,
भेद  मिटा  गोरे-काले  का
दसों दिशा में उमड़ा प्यार।
 
झगड़े-झंझट  और  झमेले
छोड़, भुला दो बैर कसैले,
फागुन की मदमस्त बयारें
आई  हैं  करने  मनुहार।