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होश खोने का वक़्त आया है / कैलाश झा 'किंकर'

होश खोने का वक़्त आया है
कोई दिल में ही अब समाया है।

उम्र का फ़ासला मिटाकर के
उसने पागल मुझे बनाया है।

गीत, ग़ज़लों में ढालकर ख़ुद को
मैंने ख़ुद को ही आजमाया है।

कह नहीं सकता हूँ किसी को भी
किसने मुझको यहाँ पर लाया है।

सिर्फ साहित्य ही सुकूं देता
शायरी ने भी रंग लाया है।

व्यस्तता ने मुझे तो बचपन से
आगे बढ़कर गले लगाया है।