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होश / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
होश की बात मत किया कीजै
होश की बात करना वहशत है।
रोशनी ख़्वाब है बस अंधों का
आंखवालों के लिए दहशत है।
रोज़ मर-मर के जी रहे हैं मगर,
और जीने की अभी हसरत है।
बोझ है पर उठाए फिरते हैं
ज़िंदगी क्या हसीन ज़हमत है।