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हो गइल बेकहल / विनय राय ‘बबुरंग’

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जियते जिनिगी हमार हो गइल बेदखल।
अइसन बेटा भइल हो गइल बेकहल।।
जहिया पैदा भइल कई थरिया फूटल
एकरा करनी से हमरो कमरिया टूटल
काम अइसन करे बेटहल क टहल
अइसन बेटा भइल हो गइल बेकहल।।

कुछ कहीलां त घुड़केला अइसन हमें
फिर भट्ठी पर सरकेला गवें-गवें
ई घूमि घूमि उठावे हवाई महल
अइसन बेटा भइल हो गइल बेकहल।।

बनि के हीरो ई सपना बराबर देखे
जेके धइले बा टी बी बराबर खोंखे
न जाने ई कइसन नाला में बहल
अइसन बेटा भइल हो गइल बेकहल।।

बहू आई त खाई का बुझात नइखे
घर उजार देख तनिको सरमात नइखे
ई आंगन के छोड़ि के का बाटे बचल
अइसन बेटा भइल हो गइल बेकहल।।

माई बाबू से जकरा पीयार नइखे
घर में समझी कि सरवन कुमार नइखे
जेवन दलदल में संस्कार जा के फंसल
अइसन बेटा भइल हो गइल बेकहल।।

हम का कहीं लइका ह चुप्पे रहबि
जेवन करत बा करे दऽ ओके सहबि
हम समझी कि पानी में कुले बहल
अइसन बेटा भइल हो गइल बेकहल।।