हो जाते यदि नयन मुखर / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
संकल्पों को ढहा न पाते खुद ढह जाते हैं गिरिवर।
वेगवती जलधाराओं को कहाँ रोक पाते पत्थर।
तम भी बन जाता प्रकाश है यदि दीपक का साथ मिले।
छवि की छटा बदल सकती यदि पा जाये हास अधर।
वाणी के यदि दृग भी होते तो होती कुछ और कहन
प्रेम और भी उँचा होता हो जाते यदि नयन मुखर।
अगर मुत्यु का रास न होता और लहू की प्यास कुटिल
धरती घोर उदास न होती, होता यहाँ स्वर्ग सुन्दर।
कहाँ वनज है जो ठहरे दिल में दिमाग में असर लिए
कहने को तो रोज कही जाती है गजलें मंचों पर।
वे ही बढ़ पाते हैं आगे जिनका जगा हुआ जीवन
डगर डगर पर कदम कदम पर किसे नहीं मिलते अवसर ?
धैर्य धरा का और व्योम की व्यापकता से भी व्यापक
निर्विकार है, निर्विचार है, निराधार है वह ईश्वर।
ममता से भी अधिक मधुर है ममता की पावन माता,
माता से भी मधुर ज्ञान है और ज्ञान से परमेश्वर।